Friday, September 4, 2015


वहम्

रात ही नहीं दिन भी है जुदा-जुदा,
ये ज़िन्दगी भी कैसी किश्त अदायगी कर रही है,
इस सफर में ना कोई पास है ना दूर,
न रूबरू हो सके किसी से पास से,
कुछ वहम था जो टूट गया,
बीता जो वक़्त वो यादों का मौसम था,
बस उससे एक हमदर्दी सी है,
पर.………… 
शायद वो स्टेशन पर आखिरी गाड़ी था।.!!!!

Thursday, November 20, 2014


रात 



हर रात रुआंसा कर जाती है,
आंसुओं का काम आंसा कर जाती है,
रंग लहू के एक पर कितने रंग जता जाते है,
सपने सारे सुबह आँखों में धूल जाते हैं। 

जनाजा निकाले बातों की,
यादों से जलती-झुलसती रातों में,
तू आती है सदा,
दोस्ती का जनाजा साथ लेते हुए। 

बिजली गिरी है मेरी नींदों में,
तूफां ने अपना खेल-खेला है ,
तन्हाई है हर उस बातों में,
जहाँ तुम्हारी यादों की लहर चली है,
बात ही जो करनी थी,पर बात कौन करे?
मेरी तन्हाई से दो-दो हाथ कौन करे???

टुकड़ों  में है दिन मेरे,
मन जब तेरी बातें करता है,
दिखती हो हर बार जब तुम,
"क्यों मुझको हर बार रुला देता है??
दर्द अगर हो तुमको तनिक भी,
क्यों,खुद को खुद से  भुला देता हूँ मैं। । "

Saturday, April 5, 2014

दोस्ती हमारी …… 


लगता है थम सी गई है ज़िन्दगी हमारी,
किसी किनारे पर,
गजब हैं अफ़साने हमारे,
न जाने किसने बनाए ये खूबसूरत तराने।।

शाम थी बड़ी मस्तानी,खुदा कि दरबार लगी थी,
हवा भी सुहानी थी पर दिल था रुवांसा,
सोचा आज पूछ ही लूं अपने भगवान से,
ये दोस्ती किस बला का नाम है??

आंसमा खुला था,धरती भी सुघंदित,
खुदा का जवाब आया,

" दोस्ती हो यदि सच्चा तो वक़्त रुक जाता है,
आसमां लाख उच्चा, मगर झुक ही जाता है,
दोस्ती में दुनिया लाख बनती रुकावट,
अगर किसी एक भी दोस्ती सच्चा हो,
 तो हम भी सजदे झुक जाते।

दोस्ती वो एहसास है जो लाख मिटाये-मिटता नहीं,
दोस्ती वो हिमालय है जो कभी झुकता नहीं,
इसकी कीमत न पूछो हमसे,
इसके आगे तो खुद भी झुक जाता है.। "

हमने बोला तो ऐसी होती है ये दोस्ती,
एक प्रार्थना स्वीकार कर लो हमारी,
कभी मेरी दोस्ती कि खबर करना उसे,
और अपने इस कोमल धुन और,
मीठी-मीठी लफ्जों में,
इल्म बताना मेरी दोस्ती कि।!!। 

Thursday, January 16, 2014

 कहने को मन करता है…दोस्त के खतिर… !!

रूखे हाथों से फिर से सजाया है हमने,
कोड़े-कागज़ पर फिर से कुछ उकेरा है हमने।

सपने कई सँजोए हैं इन आँखों में हमने,
चिराग सा जल गया है इन आँखों में,
तुम बस दोस्ती कि इस आग को जलाए रखना।

धुप छेकने कि ख्वाइश देखें हैं इन आँखों ने,
 उँगलियों को उलझाए रखना,
तुम बस दोस्ती पर अपनी हाथो कि छाव रखना। 

कई डोर देखें हैं हमने पतंग के,
टूट जाए कभी हमारे दोस्ती कि डोर,
तुम बस अपनी डोर मेरी डोर से उलझाए रखना।

मंज़िले आसां नहीं होती अँधेरे में,
पर एक जुगनू कि तरह,
तुम बस मुट्ठी मैं छुपाए रखना इस दोस्ती को।

कलम जो उठाया है हमने,
पर बयाँ करने को शब्द नहीं मिलता,
कभी नाराज़गी का मौसम आए तो,
अपना पीर बना देना ए खुदा,
कम पड़े कोई आरज़ू उनकी,
उसे देकर मुझे फ़कीर बना देना।।

Tuesday, December 31, 2013

नया साल नए वादे नई सोच … !!!

आखिरी रात का आखिरी पल,
 को याद रहे वो सारा पल,
कि प्यार कि शम्मा को जलाना ही होगा,
हिन्द-ए -हिंदुस्तान को बचाना ही होगा,
लग गई है जिसपे धार्मिक-राजनीत का कलंक,
न कोई गीता हो न कोई कुरान,
इंसा पे क़ुर्बान हो हज़ारों निशाँ,
इस बार तो हद ही करदी खूनी दरिंदों ने,
चाहे कोई राम पूजे या अल्लाह पुकारे,
कोई तो हो जिसके सामान अश्क हो,
ना हो हिन्दू न मुसलमाँ,
 सब एक इंसा हों,
साथ हो हम तो एक तूफ़ान क्या??
हज़ारों जमा बदल के रख देंगे,
जुल्म और ताकत से नहीं,
ये जमाना आबाद है तो इल्म से,
नफरत से नहीं ये जमाना आबाद है 
प्यार से.…।

नए साल में पैगाम दीजिये,
इंसा से इंसा के मोहब्बत का,
नए साल में वादा करें ,
फिर से न दोहरायंगे मुजफ्फरनगर,
आखिरी रात का आखिरी पल,
 को याद रहे वो सारा पल,
कि प्यार कि शम्मा को जलाना ही होगा,
हिन्द-ए -हिंदुस्तान को बचाना ही होगा..... ।।

Tuesday, September 3, 2013

दोस्ती की नाकामी …. !!

इन उम्मीदों का मंजिल क्या है??
अपने आप से पूछ रहा हूँ मैं,
 कसमकश जो कभी जंजीरे सी बन जाती,
हर बार कि तरह कुछ घन्टों की नाकाम कोशिशें ,
ना जाने मैं क्या सोचता इस तरह.…!!!

नाता भी अजीब सी है,हर पल अपनों का एहसास दिलाता,
कुछ एहसास सा हुआ पास से गुजरने का,
कुछ खोया हुआ एहसास था चारो तरफ,
देखा कुछ चंद सवालों से लिपटा तेरा चेहरा,
शिकन बन तेरे चेहरे पर बन आई ख़ामोशी।।

यूँ तो रिश्ते नाते बहुत हैं ज़िन्दगी में,
सजदे सा हँस देता हूँ,
ऐसी है कुछ साथ तेरी!!!!

ये दोस्ती तुम्हारी एक एहसास है,
बिन पन्नों के किताब है ये,
ज़िन्दगी में रंग भर देती ये दोस्ती,
हम इंसान तो इंसान भगवान् भी इससे अछूते नहीं!!!!
सजदे सा हँस देता हूँ,
ऐसी है कुछ साथ तेरी!!!!

Tuesday, June 4, 2013


ख़ामोशी का पहरा .......!!

सहसा ख़ामोशी में घिरा हुआ पाया खुद का चेहरा,
मैंने डरते हुए  देखा था ख़ुशी पर ख़ामोशी का पहरा!!

सहसा बात बदल कर,मन शांत करके,
फिर कुछ छेरा बातें पुरानी।

मंडिया कई थी,ठेले अनेक थे,
पर कहीं कोने में मचल रहा था रंगीन गुब्बारे तुम्हारे,
ठिठक गया था मैं वहीँ,भा गए थे वे गुब्बारे!!

सोचके मैं करता क्या????
भा गए थे वे गुब्बारे!!!

बिखर गए शाम हमारे,
रात का इंतज़ार करते।।

नींद बिखरे हैं,ख्वाब देखते तुम्हारे,
 
बाहर के आंधी से था,मन का तूफ़ान था कहीं बढ़कर ,
बहार के आघातों से,मन का अवसान था कहीं बढ़कर,
फिर भी मेरे मन ने तुमको उरने की गति चाहि।।